देश में अनुसंधान के प्रमुख केंद्रों में से एक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उच्च अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी), गुवाहाटी जिसका उद्घाटन वर्ष 1979 में नोबल लॉराइट एवं एक ब्रिटिश जैविक रसायनज्ञ, मैडम डोरोथी हॉजकिंस द्वारा किया गया था की ओर से आप सभी का अभिवादन। वर्तमान, आईएएसएसटी भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक स्वशासी अनुसंधान एवं विकास संस्थान के रूप में कार्य कर रहा है। अपनी स्थापना के बयालीस वर्ष की यात्रा काफी लंबी है; हालाँकि हम आज भी देश के कई पुराने संस्थानों और विश्वविद्यालयों की तुलना में युवा हैं। हमें देश के विकास के लिए दृढ़ संकल्प और समर्पण के साथ निरंतर आगे बढ़ने की जरूरत है।
आईएएसएसटी के पास भौतिक और जीवन विज्ञान के सीमांत अनुसंधान क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय दृश्यता और सामाजिक विकास के लिए उन्नत वैज्ञानिक ज्ञान की दिशा में मानव संसाधन के निर्माण के उत्कृष्टता केंद्र के रूप में उभरने के लिए अपनी एक स्पष्ट दृष्टि और जनादेश उपलब्ध है जिसे प्राप्त करने के लिए कई उद्देश्य और रणनीतियाँ अपनाई गई हैं। विस्तृत 60 बीघा भूमि क्षेत्रफल में फैला हुए संस्थान में कुल 20 संकाय सदस्य, 41 नियमित प्रशासनिक और सहायक कर्मचारी, चार पोस्टडॉक्टोरल फेलो, 96 पीएचडी छात्रों सहित संस्थागत जेआरएफ और 25 परियोजना कर्मचारी कार्यरत है। इनमें से 48 प्रतिशत छात्रों के पास राष्ट्रीय फेलोशिप है, 35 प्रतिशत संस्थागत जेआरएफ हैं, और 17 प्रतिशत छात्र परियोजना अनुदान से समर्थित हैं। मैं डीएसटी, भारत सरकार को उनके भारी समर्थन के लिए धन्यवाद देता हूं जिसने देश के एक दूरस्थ कोने में स्थित इस संस्थान के समावेशी विकास और उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
संस्थान की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है अत्याधुनिक अनुसंधान और नई प्रौद्योगिकीयां विकसित करने हेतु वैज्ञानिकों तथा शोधकर्ताओं के लिए एक अनुकूल वातावरण का तैयार कर उन्हें प्रोत्साहित करना। पिछले कुछ वर्ष पूरी दुनियां के लिए असामान्यता वाले थे; फिर भी, आईएएसएसटी कई आउटरीच गतिविधियों का समर्थन करके समाज के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण पहल करने के अलावा, उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान और नवाचार, प्रौद्योगिकी के विकास और मानव वैज्ञानिक संसाधनों को आश्वस्त और समर्थन देने के लिए बुनियादी ढांचे और अत्याधुनिक उपकरण सुविधा के निर्माण के मामले में पर्याप्त प्रगति की है। इन पहलों को बढ़ावा देने के लिए, ‘आईएएसएसटी सोशल वेंचर एंड एंटरप्रेन्योरशिप काउंसिल (आईएसवीईसी)’, जिसका प्राथमिक उद्देश्य आईएएसएसटी और अन्य संस्थानों के शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों की अवधारणा के प्रमाण का समर्थन करना है, अब स्थापित हो गया है। बायोनेस्ट और आईएसवीईसी कार्यक्रमों के तहत हमारे बायो इनक्यूबेशन केंद्रों से बड़ी संख्या में इनक्यूबेट्स लाभान्वित होते हैं।
कोविड-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज के सभी पहलुओं में महत्वपूर्ण अनिश्चितता उत्पन्न कर दी है। यह बहुत प्रसन्नता का विषय है कि भारत ने रिकॉर्ड डेढ़ अरब कोविड वैक्सीन खुराकें दी, जिसे हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी ने भारतीय विज्ञान, उद्यम और सामूहिक भावना की जीत के रूप में वर्णित किया । कोविड-19 महामारी की पहली लहर के दौरान, आईएएसएसटी ने मानव संकट के महत्वपूर्ण क्षण में समाज की तत्काल आवश्यकता को महसूस करते हुए सरकार की ‘टेस्टिंग-ट्रैकिंग-ट्रीट’ नीति के तहत परीक्षण क्षमता बढ़ाने के लिए आरटी-पीसीआर-आधारित परीक्षण सुविधा स्थापित करने के लिए अपनी प्रयोगशाला और मानव संसाधनों की पेशकश करने का निर्णय लिया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) और पीडब्ल्यूडी, असम सरकार ने 2020 में आईएएसएसटी में कोविड-19 परीक्षण और अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की। मुझे यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि प्रयोगशाला ने अपनी सीमित सुविधा के साथ करीब 1.5 लाख से अधिक परीक्षण किए हैं, जो राष्ट्र के लिए उत्कृष्ट सेवा है।
भविष्य की दृष्टि से, मैं इस मंच से इस बात पर ज़ोर देना चाहता हूँ कि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास पर क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए हमारे पास पर्याप्त गुंजाइश है। यद्यपि स्थानीय शोधकर्ताओं के साथ सहयोग अनुसंधान के निष्पादन और कार्यान्वयन के बीच के अंतर को पाट सकता है, परंतु अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं के साथ सहयोग करना भी आवश्यक है क्योंकि वास्तव में यह सफलता के लिए महत्वपूर्ण है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से ना केवल शोधकर्ता लाभान्वित होते है अपितु इससे संस्थानों को भी लाभ होता है, यह ज्ञान, विशेषज्ञता और संस्कृति के समृद्ध आदान-प्रदान की अनुमति देता है जो सतत विकास के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। जैसे- जैसे विज्ञान अधिक से अधिक जटिल होता जा रहा है कई शोधकर्ताओं ने विशेषज्ञता को सीमित रूप से केंद्रित करने का प्रयास किया है। इन शोधकर्ताओं को अन्य विशेषज्ञता वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से लाभ होगा।
इन सभी अनुकरणीय उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिए, मैं शिक्षा जगत और समाज के सभी वर्गों के बहुमूल्य सुझावों का तहे दिल से स्वागत करता हूँ!
‘जय हिन्द’
आशीष के. मुखर्जी, पीएच.डी., डी.एससी., एफआरएसबी (यूके), एफएएससी
निदेशक